14 खान पान की बदलती तस्वीर
14 खानपान की बदलती तस्वीर
पाठ्यपुस्तक
के प्रश्न-अभ्यास
निबंध से
प्रश्न 1.
खानपान की मिश्रित संस्कृति से लेखक का क्या मतलब है? अपने घर के उदाहरण देकर इसकी व्याख्या करें।
उत्तर-
खानपान की मिश्रित संस्कृति से लेखक का मतलब है- स्थानीय अन्य
प्रांतों तथा विदेशी व्यंजनों के खानपान का आनंद उठाना यानी स्थानीय व्यंजनों के
खाने-पकाने में रुचि रखना, उसकी गुणवत्ता तथा स्वाद को बनाए
रखना। इसके अलावे अपने पसंद के आधार पर एक-दूसरे प्रांत को खाने की चीजों को अपने
भोज्य पदार्थों में शामिल किया है। जैसे आज दक्षिण भारत के व्यंजन इडली-डोसा,
साँभर इत्यादि उत्तर भारत में चाव से खाए जाते हैं और उत्तर भारत के
ढाबे के व्यंजन सभी जगह पाए जाते हैं। यहाँ तक पश्चिमी सभ्यता का व्यंजन बर्गर,
नूडल्स का चलन भी बहुत बढ़ा है। हमारे घर में उत्तर भारतीय और
दक्षिण भारतीय दोनों प्रकार के व्यंजन तैयार होते हैं। मसलन मैं उत्तर भारतीय हूँ,
हमारा भोजन रोटी-चावल दाल है लेकिन इन व्यंजनों से ज्यादा इडली
साँभर, चावल, चने-राजमा, पूरी, आलू, बर्गर अधिक पसंद
किए जाते हैं। यहाँ तक कि हम यह बाजार से ना लाकर घर पर ही बनाते हैं। इतना ही
नहीं विदेशी व्यंजन भी बड़ी रुचि से खाते हैं। लेखक के अनुसार यही खानपान की
मिश्रित संस्कृति है।
प्रश्न 2.
खानपान में बदलाव के कौन से फ़ायदे हैं? फिर
लेखक इस बदलाव को लेकर चिंतित क्यों है? [Imp.]
उत्तर
खानपान में बदलाव से निम्न फ़ायदे हैं-
1.
एक
प्रदेश की संस्कृति का दूसरे प्रदेश की संस्कृति से मिलना।
2.
राष्ट्रीय
एकता को बढ़ावा मिलना।
3.
गृहिणियों
व कामकाजी महिलाओं को जल्दी तैयार होने वाले विविध व्यंजनों की विधियाँ उपलब्ध
होना।
4.
बच्चों
व बड़ों को मनचाहा भोजन मिलना।
5.
देश-विदेश
के व्यंजन मालूम होना।
6.
स्वाद, स्वास्थ्य व सरसता के आधार पर भोजन का चयन कर पाना।
खानपान में बदलाव से होने वाले फ़ायदों के
बावजूद लेखक इस बदलाव को लेकर चिंतित है क्योंकि उसका मानना है कि आज खानपान की
मिश्रित संस्कृति को अपनाने से नुकसान भी हो रहे हैं जो निम्न रूप से हैं
1.
स्थानीय
व्यंजनों का चलन कम होता जा रहा है जिससे नई पीढी स्थानीय व्यंजनों के बारे में
जानती ही नहीं
2.
खाद्य
पदार्थों में शुद्धता की कमी होती जा रही है।
3.
उत्तर
भारत के व्यंजनों का स्वरूप बदलता ही जा रहा है।
प्रश्न 3.
खानपान के मामले में स्वाधीनता का क्या अर्थ है?
उत्तर-
खानपान के मामले में स्वाधीनता का अर्थ है किसी विशेष स्थान के
खाने-पीने का विशेष व्यंजन। जिसकी प्रसिद्धि दूर दूर तक हो। मसलन मुंबई की पाव
भाजी, दिल्ली के छोले कुलचे, मथुरा के
पेड़े व आगरे के पेठे, नमकीन आदि। पहले स्थानीय व्यंजनों का
प्रचलन था। हर प्रदेश में किसी न किसी विशेष स्थान का कोई-न-कोई व्यंजन अवश्य
प्रसिद्ध होता था। भले ही ये चीजें आज देश के किसी कोने में मिल जाएँगी लेकिन ये
शहर वर्षों से इन चीजों के लिए प्रसिद्ध हैं। लेकिन आज खानपान की मिश्रित संस्कृति
ने लोगों को खाने-पीने के व्यंजनों में इतने विकल्प दे दिए हैं कि स्थानीय व्यंजन
प्रायः लुप्त होते जा रहे हैं। आज की पीढ़ी तो कई व्यंजनों से भलीभाँति
अवगत/परिचित भी नहीं है। दूसरी तरफ़ महँगाई बढ़ने के कारण इन व्यंजनों की गुणवत्ता
में कमी होने से भी लोगों का रुझान इनकी ओर कम होता जा रहा है। हाँ, पाँच सितारा होटल में इन्हें ‘एथनिक’ कहकर परोसने लगे हैं।
निबंध से आगे
प्रश्न 1.
घर से बातचीत करके पता कीजिए कि आपके घर में क्या चीजें पकती हैं और
क्या चीजें बनी-बनाई बाज़ार से आती हैं। इनमें से बाज़ार से आनेवाली कौन-सी चीजें
आपके-माँ-पिता जी के बचपन में घर में बनती थीं?
उत्तर-
मैं उत्तर भारतीय निवासी हैं। हमारे घर में कई प्रकार के व्यंजन
बनाए जाते हैं तथा कई तरह के बाजार से लाया जाता है। घर में बनने वाली चीजें एवं
बाजार से आने वाली चीजों की तालिका नीचे दी जा रही है।
हमारे घर में बननेवाली चीजें |
बाजार से आनेवाली चीजें |
दाल |
समोसे |
प्रश्न 2.
यहाँ खाने पकाने और स्वाद से संबंधित कुछ शब्द दिए गए हैं। इन्हें
ध्यान से देखिए और उनका वर्गीकरण कीजिए
उबालना, तलना, भूनना,
सेंकना, दाल, भात,
रोटी, पापड़, आलू,
बैंगन, खट्टा, मीठा,
तीखा, नमकीन, कसैला। |
भोजन |
कैसे पकाया |
स्वाद |
सब्ज़ी |
उबालना |
नमकीन |
उत्तर-
प्रश्न 3.
छौंक चावल कढ़ी
• इन शब्दों में क्या अंतर है? समझाइए। इन्हें बनाने
के तरीके विभिन्न प्रांतों में अलग-अलग हैं। पता करें कि आपके प्रांत में इन्हें
कैसे बनाया जाता है।
उत्तर
छौंक, चावल और कढ़ी में निम्न अंतर है-
छौंक-यह प्याज, टमाटर,
जीरा व अन्य मसालों से बनता है। कढ़ाई या किसी छोटे आकार के बर्तन
में घी या तेल गर्म करके उनमें स्वादानुसार प्याज, टमाटर व जीरे
को भूना जाता है। कई बार इसमें धनिया, हरी मिर्च, कसूरी मेथी, इलाइची व लौंग आदि भी डाले जाते हैं।
छौंक जितना चटपटा बनाया जाए सब्जी उतनी स्वाद बनती है।
चावल-चावल कई प्रकार से बनते हैं।
उबले (सादा) चावल–एक भाग चावल व तीन भाग पानी डालकर उबालकर बनाना।
चावल पकने पर फालतू पानी बहा देना।
पुलाव-जीरे व प्याज को घी में भूनकर
चावलों में छौंक लगाना। खूब सारी सब्ज़ियाँ डालकर पकाना। इसमें पानी नापकर डाला
जाता है। जैसे एक गिलास चावल तो दो गिलास पानी। कई बार सब्जियों को अलग पकाकर
चावलों में मिलाया भी जाता है।
खिचड़ी-चावलों को दाल के साथ मिलाकर
बनाना। इसमें पानी अधिक मात्रा में डाला जाता है। जैसे-एक भाग चावल, आधा भाग दाल व तीन से चार भाग पानी। पकने के बाद जीरे व गर्म मसाले का
छौंक लगाया जाता है।
(नोट-इन सब में नमक स्वादानुसार डाला
जाता है।)
• इसके अतिरिक्त खाने का रंग, गुड़ या चीनी डालकर मीठे
चावल भी बनाए जाते हैं। कढ़ी-बेसन और दही मिलाकर, उसमें खूब
पानी डालकर उबाला जाता है फिर उसमें बेसन के पकौड़े बनाकर डाले जाते हैं। पकने पर
इसमें स्वादानुसार मसाले डालकर छौंक लगाया जाता है।
यदि हम ध्यान से इनमें अंतर करें तो पाएँगे कि कढ़ी एक प्रकार की
सब्जी, छौंक किसी सब्ज़ी या दाल को स्वाद बनाने वाला व चावल
जिन्हें सब्जी, दाल या दही के साथ खाया जाता है।
प्रश्न 4.
पिछली शताब्दी में खानपान की बदलती हुई तसवीर का खाका खींचें तो इस
प्रकार होगा-
सन् साठ का देशक – छोले-भटूरे
सन् सत्तर का दशक – इडली, डोसा
सन् अस्सी का दशक – तिब्बती
(चीनी) भोजन
सन् नब्बे का दशक – पीजा, पाव-भाजी
• इसी प्रकार आप कुछ कपड़ों या पोशाकों की बदलती तसवीर का खाका खींचिए।
उत्तर
प्रश्न 5.
मान लीजिए कि आपके घर कोई मेहमान आ रहे हैं जो आपके प्रांत का
पारंपरिक भोजन करना चाहते हैं। उन्हें खिलाने के लिए घर के लोगों की मदद से एक
व्यंजन सूची ( मेन्यू) बनाइए।
उत्तर-
व्यंजन-सूची ( मेन्यू)
रोटी |
सब्ज़ी |
दाल |
चावल |
आचार |
अन्य |
रोटी तवा |
मटर पनीर |
दाल-अरहर |
चावल-सादा |
आचार-आम |
रायता |
शाही पनीर |
दाल-मटर |
पुलाव |
आचार नींबू |
पापड़ |
|
रोटी रूमाली |
पनीर मिक्स |
दाल-मसूर |
चावल-मटर |
आचार-करेला |
चिप्स |
रोटी तंदूरी |
आलू-पालक |
दाल-उरद |
चावल जीरा |
आचार गाजर |
सलाद |
मिस्सी रोटी |
पालक-पनीर |
दाल-मिक्स |
भरवा मिर्च |
||
नान सादा |
आलू-गोभी |
दाल-मक्खनी |
आचार मिश्रित |
||
कुलचे |
आलू सोयाबीन |
दाल-तड़का |
|||
पूड़ी |
आलू-राजमा |
दाल-फ्राई |
|||
पूड़ी बेसन |
आलू-मेथी |
||||
कचौड़ी (दाल) |
कड़ी पालक |
||||
कचौड़ी आलू |
बैंगन का भुरता |
||||
परांठे |
कोफ़्ता |
||||
आलू नान |
कढ़ी गाजर |
||||
गोभी नान |
बेसन |
||||
कढी-पकौड़ा |
|||||
मेथी-पालक |
|||||
आलू मटर |
अनुमान और कल्पना
प्रश्न 1.
‘फ़ास्ट फूड’ यानी तुरंत भोजन के नफे-नुकसान पर कक्षा में वाद-विवाद
करें।
उत्तर-
‘फ़ास्ट फूड’ भोजन तैयार करने में तो समय की बचत होती है साथ ही साथ
स्वादिष्ट भी होते हैं लेकिन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और कई तरह की बीमारियों
को जन्म भी देते हैं।
प्रश्न 2.
हर शहर, कस्बे में कुछ ऐसी जगहें होती हैं जो
अपने किसी खास व्यंजन के लिए जानी जाती हैं। आप अपने शहर, कस्बे
का नक्शा बनाकर उसमें ऐसी सभी जगहों को दर्शाइए।
उत्तर
कुछ शहरों के उदाहरण
प्रश्न 3.
खानपान के मामले में शुद्धता का मसला काफ़ी पुराना है। आपने अपने
अनुभव में इस तरह की मिलावट को देखा है? किसी फ़िल्म या
अखबारी खबर के हवाले से खानपान में होनेवाली मिलावट के नुकसानों की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
खानपान के मामले में गुणवत्ता यानी शुद्धता होना आवश्यक है, क्योंकि अशुद्धता अनेक बीमारियों को जन्म देती है। आजकल खाने-पीने वाले
पदार्थों में मिलावट बढ़ती जा रही है। उदाहरण के तौर पर हल्दी व काली मिर्च ऐसे
पदार्थ हैं। जिसमें मिलावट आम तौर पर देखी जा सकती है। हल्दी में मिट्टी व काली
मिर्च में पपीते के बीजे का मिश्रण होता है। इसके अलावे दूध में भी पानी मिलाना तो
आम बात हो गई है, जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है।
आज के मुनाफ़ाखोरी के युग में लोग किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। आज मुनाफाखोरी
के युग में लोग कोई भी समझौता करने को तैयार हैं। लोगों को स्वास्थ्य की फ़िक्र
जरा भी नहीं है। वास्तव में ऐसा करने से स्वास्थ्य खराब हो जाता है। आँखों की
रोशनी कम हो जाती है। लीवर की खराबी, साँस संबंधी रोग,
पीलिया आदि रोगों को जन्म देते हैं। सब्ज़ियों में डाले जाने वाले
केमिकल्स से हमारे स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। मिलावटखोरों के प्रति सजग
होकर खाद्यपदार्थों में किसी तरह की मिलावट का विरोध करना चाहिए।
भाषा की बात
प्रश्न 1.
खानपान शब्द खान और पान दो शब्दों को जोड़कर बना है। खानपान शब्द
में और छिपा हुआ है। जिन शब्दों के योग में और, अथवा,
या जैसे योजक शब्द छिपे हों, उन्हें द्वंद्व
समास कहते हैं। नीचे द्वंद्व समास के कुछ उदाहरण दिए गए हैं। इनका वाक्यों में
प्रयोग कीजिए और अर्थ समझिए
सीना-पिरोना |
भला-बुरा |
चलना-फिरना |
उत्तर-
सीना-पिरोना – नेहा सीने-पिरोने की कला में काफ़ी अनुभवी है।
भला-बुरा – मैंने उसे भला-बुरा कहा।
चलना-फिरना – चलना-फिरना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।
लंबा-चौड़ा – धनीराम का व्यापार लंबा-चौड़ा है।
कहा-सुनी – सास-बहू में खूब कहा-सुनी हो गई।
घास-फूस – उसका घर घास-फूस का बना है।
प्रश्न 2.
कई बार एक शब्द सुनने या पढ़ने पर कोई और शब्द याद आ जाता है। आइए
शब्दों की ऐसी कड़ी बनाएँ। नीचे शुरुआत की गई है। उसे आप आगे बढाइए। कक्षा में
मौखिक सामूहिक गतिविधि के रूप में भी इसे दिया जा सकता है
इडली – दक्षिण – केरल – ओणम् – त्योहार – छुट्टी – आराम
उत्तर
आराम – कुर्सी, तरणताल
– नहाना, नटखट –
बालक, चंचल –
बालिका।
कुछ करने को
प्रश्न 1.
उन विज्ञापनों को इकट्ठा कीजिए जो हाल ही के ठंडे पेय पदार्थों से
जुड़े हैं। उनमें स्वास्थ्य और सफ़ाई पर दिए गए ब्योरों को छाँटकर देखें कि हकीकत
क्या है।
उत्तर
विद्यार्थी स्वयं करें विज्ञापनों को इकट्ठा करने हेतु पुरानी
पत्र-पत्रिकाएँ व समाचार-पत्र जो कि पुस्तकालयों में उपलब्ध रहते हैं, की सहायता लीजिए।
अन्ये
पाठतर हल प्रश्न.
बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर
(क) ‘खानपान की बदलती तसवीर’ नामक पाठ के लेखक के नाम बताएँ।
(i) रामचंद्र शुक्ल
(ii) शिवप्रसाद सिंह
(iii) प्रयाग शुक्ल
(iv) विजय तेंदुलकर।
(ख) खानपान की संस्कृति में बड़ा
बदलाव कब से आया?
(i) पाँच-सात वर्षों में
(ii) आठ-दस वर्षों में
(iii) दस-पंद्रह वर्षों में
(iv) पंद्रह-बीस वर्षों में
(ग) युवा पीढ़ी इनमें से किसके
बारे में बहुत अधिक जानती है?
(i) स्थानीय व्यंजन
(ii) नए व्यंजन
(iii) खानपान की संस्कृति
(iv) इनमें से कोई नहीं।
(घ) ढाबा संस्कृति कहाँ तक फैल
चुकी है?
(i) दक्षिण भारत
(ii) उत्तर भारत तक
(iii) पूरे देश में
(iv) कहीं नहीं।
(ङ) पाव-भाजी किस प्रांत का
स्थानीय व्यंजन है?
(i) राजस्थान
(ii) महाराष्ट्र
(iii) गुजरात
(iv) मध्य प्रदेश।
(च) किसी स्थान का खान-पान भिन्न
क्यों होता है?
(i) मौसम के अनुसार, मिलने वाले खाद्य पदार्थ
(ii) रुचि के आधार पर
(iii) आसानी से वस्तुओं की उपलब्धता
(iv) उपर्युक्त सभी
(छ) इनमें से किसे फास्ट फूड के
नाम से जाना जाता है।
(i) सेव
(ii) रोटी
(iii) दाल
(iv) बर्गर
उत्तर
(क) (iii)
(ख) (iii)
(ग) (iii)
(घ) (iv)
(ङ) (ii)
(च) (iv)
(छ) (iv)
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
(क) उत्तर भारत में किस बात में
बदलाव आया है?
उत्तर-
उत्तर भारत में खान-पान की संस्कृति में बदलाव आया है।
(ख) आजकल बड़े शहरों में किसका
प्रचलन बढ़ गया है?
उत्तर-
आजकल बड़े शहरों में फ़ास्ट फूड चाइनीज नूडल्स, बर्गर, पीजा तेज़ी से बढ़ा है।
(ग) स्थानीय व्यंजनों की गुणवत्ता
में क्या फ़र्क आया है? इसकी क्या वजह हो सकती है?
उत्तर-
स्थानीय व्यंजनों की गुणवत्ता में कमी आई है जिससे लोगों का आकर्षण
कम हुआ है। इसका कारण है उन वस्तुओं में मिलावट किया जाना, जिनसे
तैयार की जाती है।
(घ) मथुरा-आगरा के कौन-से व्यंजन
प्रसिद्ध रहे हैं?
उत्तर-
मथुरा के पेड़े और आगरा का दलमोट-पेठा प्रसिद्ध है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
(क) स्थानीय व्यंजनों के प्रसार
को प्रश्रय कैसे मिली?
उत्तर-
आज़ादी के बाद उद्योग-धंधों, नौकरियों,
तबादलों (स्थानांतरण) के कारण लोगों का एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश
में जाने से मिश्रित व्यंजन संस्कृति का विकास हुआ। उसके कारण भी खानपान की चीजें
किसी एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में पहुँची हैं।
(ख) खानपान संस्कृति का
‘राष्ट्रीय एकता’ में क्या योगदान है?
उत्तर-
खानपान संस्कृति का राष्ट्रीय एकता में महत्त्वपूर्ण योगदान है।
खाने-पीने के व्यंजनों का प्रभाव एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में बढ़ता जा रहा है।
उदाहरण के तौर पर उत्तर भारत के व्यंजन दक्षिण व दक्षिण के व्यंजन उत्तर भारत में
अब काफ़ी प्रचलित हैं। इससे लोगों के मेलजोल भी बढ़ता जा रहा है जिससे राष्ट्रीय
एकता को बढ़ावा मिलता है।
(ग) स्थानीय व्यंजनों का
पुनरुद्धार क्यों ज़रूरी है?
उत्तर-
स्थानीय व्यंजन किसी न किसी स्थान विशेष से जुड़े हैं। वे हमारी
संस्कृति की धरोहर हैं। उनसे हमारी पसंद, रुचि और पहचान होती
है। इसलिए भारतीय व्यंजनों का पुनरुद्धार आवश्यक है क्योंकि पश्चिमी प्रभाव के
कारण अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं। अतः इनको पुनः प्रचलित करने की आवश्यकता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
(क) खानपान की नई संस्कृति का
नकारात्मक पहलू क्या है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
लेखक का कहना है कि मिश्रित संस्कृति से व्यंजन का अलग और वास्तविक
स्वाद का मज़ा हम नहीं ले पाते हैं। सब गड्डमड्ड हो जाता है। कई बार खानपान की
नवीन मिश्रित संस्कृति में हम कई बार चीजों का सही स्वाद लेने से भी। वंचित रह
जाते हैं, क्योंकि हर चीज़ खाने का एक अपना तरीका और उसका
अलग स्वाद होता है। प्रायः सहभोज या । पार्टियों में हम विभिन्न तरीके के व्यंजन
प्लेट में परोस लेते हैं ऐसे में हम किसी एक व्यंजन का सही मजा नहीं ले पाते। हैं।
स्थानीय व्यंजन हमसे दूर होते जा रहे हैं। नई पीढ़ी को इसका ज्ञान नहीं है और
पुरानी पीढ़ी भी धीरे-धीरे इसे भुलाती जा रही है। यह खानपान की नवीन संस्कृति के
नकारात्मक पक्ष हैं।
(क) आप खानपान में आए बदलावों को
किस रूप में लेते हैं?
उत्तर-
खानपान में आए बदलावों को आधुनिक परिवर्तन के रूप में ले सकते हैं।
अब गृहिणियों के पास स्थानीय व्यंजन पकाने के लिए समय नहीं है और प्रचुर मात्रा
में वस्तुएँ। अब समय की बचत के लिए जल्दबाजी में काम करती है। अतः कम समय में
तैयार होने वाले व्यंजन का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन मैं तथा कथित फास्ट
फूड्स-नूडल्स पिज्ज़ा बर्गर का पक्षपाती नहीं हूँ, क्योंकि
इनके प्रयोग से स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।