मुहावरों की दुनिया कविता
मुहावरों की दुनिया
हिन्दी
के मुहावरे,
बड़े ही बावरे है,
खाने
पीने की चीजों से भरे है।
कहीं
पर फल है तो कहीं आटा-दालें है,
कहीं
पर मिठाई है, कहीं पर मसाले है ,
चलो, फलों से ही शुरू कर लेते है,
एक एक
कर सबके मजे लेते है।
आम के
आम और गुठलियों के भी दाम मिलते हैं,
कभी
अंगूर खट्टे हैं,
कभी
खरबूजे, खरबूजे को देख कर रंग बदलते हैं,
कहीं
दाल में काला है,
तो
कहीं किसी की दाल ही नहीं गलती है।
कोई
डेढ चावल की खिचड़ी पकाता है,
तो
कोई लोहे के चने चबाता है,
कोई
घर बैठा रोटियां तोड़ता है,
कोई
दाल भात में मूसरचंद बन जाता है,
मुफलिसी
में जब आटा गीला होता है,
तो
आटे दाल का भाव मालूम पड़ जाता है।
सफलता
के लिए कई पापड़ बेलने पड़ते है,
आटे
में नमक तो चल जाता है,
पर
गेंहू के साथ, घुन भी पिस जाता है,
अपना
हाल तो बेहाल है, ये मुंह और मसूर की दाल है।
गुड़
खाते हैं और गुलगुले से परहेज करते हैं,
और
कभी गुड़ का गोबर कर बैठते हैं,
कभी
तिल का ताड़,
कभी राई का पहाड़ बनता है,
कभी
ऊँट के मुंह में जीरा है,
कभी
कोई जले पर नमक छिड़कता है,
किसी
के दांत दूध के हैं,
तो कई
दूध के धुले हैं।
किसी
को छटी का दूध याद आ जाता है,
दूध
का जला छाछ को भी फूंक-फूंक पीता है,
और
दूध का दूध और पानी का पानी भी हो जाता है।
शादी
बूरे के लड्डू हैं, जिसने खाए वो भी पछताए,
और
जिसने नहीं खाए, वो भी पछताते हैं,
पर
शादी की बात सुन, मन में लड्डू फूट आते है,
और
शादी के बाद, दोनों हाथों में लड्डू आते हैं।
कोई
जलेबी की तरह सीधा है, कोई टेढ़ी खीर है,
किसी
के मुंह में घी शक्कर है, सबकी अपनी अपनी तकदीर है।
कभी
कोई चाय-पानी करवाता है।
कोई
मक्खन लगाता है
और जब
छप्पर फाड़ कर कुछ मिलता है,
तो
सभी के मुंह में पानी आ जाता है।
भाई
साहब अब कुछ भी हो,
घी तो
खिचड़ी में ही जाता है, जितने मुंह है, उतनी बातें हैं,
सब
अपनी-अपनी बीन बजाते है, पर नक्कारखाने में तूती की
आवाज कौन सुनता है,
सभी
बहरे है,
बावरें है
ये सब
हिन्दी के मुहावरें हैं,
ये
गज़ब मुहावरे नहीं बुजुर्गों के अनुभवों की खान हैं,
सच
पूछो तो हिन्दी भाषा की जान हैं।